तब जाके कहीं कवी उँगता है
बहुतसी दफा जब दिल दुखता है
तब जाके कहीं कवी उँगता है
अन्याय कि जब बू सूँघता है
तब जाके कहीं कवी उँगता है
दिल में हलचल मची रहती है
मन में कुछ बाते दबी रहती है
खून में जब सैलाब उबलता है
तब जाके कहीं कवी उँगता है
विश्व यह सुहाना प्यारा लगता है
हर कोई अपना दुलारा लगता हैं
दिल में जब प्यार खिलता है
तब जाके कहीं कवी उँगता है
सुख दुःख सब साथी बनते है
हर हाल में खुश रहते है
दुःखोसे कही ऊपर उठता है
तब जाके कहीं कवी उँगता है
आ जाता हूं कभी तेरी बस्ती में
कभी झूमता हूँ खूब मस्ती में
जिंदगी को जब निहारता है
तब जाके कहीं कवी उँगता है
जिंदगी यह जब छलती है
कुछ बाते मन में खलती है
तब अलग कुछ मूड बनता है
तब जाके कहीं कवी उँगता है
कुछ दर्द तेरा कुछ दर्द मेरा
शब्दों के सहारे समेटता हूँ
सारा
दर्द ही जब मर्ज बनता है
तब जाके कहीं कवी उँगता है
जीवन एक हसीन सपना
कलम के साथ सफर अपना
लिख के जब चेहरा खिलता है
तब जाके कहीं कवी उँगता है
जिंदगी जीने का अलग ही मजा है
कुछ बाते समझे तो ना ये सजा है
जीवन की परिभाषा समझता है
तब जाके कहीं कवी उँगता है
© राजेश खाकरे
मो.7875438494